स्वतंत्रता सेनानी वीडी सावरकर के खिलाफ बयान देकर कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्री दिनेश गुंडू राव मुश्किलों में फंस गए हैं। दरअसल बजरंग दल के एक कार्यकर्ता ने शुक्रवार को स्वास्थ्य मंत्री के खिलाफ मामला दर्ज कराया है। शिकायतकर्ता तेजस गौड़ा ने कहा कि ‘स्वास्थ्य मंत्री को सार्वजनिक रूप से अपनी भाषा के प्रति अधिक सतर्क रहना चाहिए। स्वास्थ्य मंत्री के रूप में वे एक जिम्मेदार पद पर हैं और जब भी वे मीडिया को संबोधित करते हैं या सार्वजनिक रूप से बोलते हैं, तो उन्हें सावधान रहना चाहिए। वीर सावरकर के बारे में उनका हालिया बयान अनुचित था।
तेजस गौड़ा ने कहा कि ‘दिनेश गुंडू राव ने अपने हालिया बयान में दावा किया था कि सावरकर ब्राह्मण होने के बावजूद गोमांस खाते थे। मैं दिनेश गुंडू राव से पूछना चाहता हूं- क्या आपके पास इस बात का कोई सबूत है कि सावरकर ने गोमांस खाया था?’ बजरंग दल कार्यकर्ता ने आगे कहा कि ‘मैं सीधे पूछता हूं, क्या वीर सावरकर आपके (दिनेश गुंडू राव) सपनों में आए और उन्होंने ये स्वीकार किया?’
गौड़ा ने मंत्री को सावरकर पर खुली चर्चा के लिए चुनौती भी दे डाली। उन्होंने कहा, ‘मैं गुंडू राव को इस मामले पर सार्वजनिक चर्चा के लिए एक तिथि, स्थान और समय निर्धारित करने की चुनौती देता हूं। हम सावरकर के बारे में इस तरह के झूठे आरोपों और अफवाहों को फैलने देने के बजाय इस पर खुलकर चर्चा करने के लिए तैयार हैं। मैं आपसे अपने काम और लोगों के स्वास्थ्य पर ध्यान देने का आग्रह करता हूं।’
दिनेश गुंडू राव ने अपने बयान में क्या कहा था
बीती 2 अक्टूबर को, एक किताब के लॉन्च के दौरान, दिनेश गुंडू राव ने कहा, ‘सावरकर गोहत्या के विरोधी नहीं थे। वे चितपावन ब्राह्मण थे, लेकिन मांसाहारी थे। इस अर्थ में, वे आधुनिकतावादी थे। जबकि उनकी सोच कुछ मायनों में कट्टरपंथी थी, वे आधुनिक भी थे। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि वे गोमांस खाते थे, लेकिन निश्चित रूप से, एक ब्राह्मण के रूप में, उन्होंने मांस खाया और खुले तौर पर इसकी वकालत की।’ उन्होंने आगे कहा, ‘महात्मा गांधी शाकाहारी थे और हिंदू धर्म में गहरी आस्था रखते थे, लेकिन उनके काम अलग थे। वे एक लोकतांत्रिक व्यक्ति थे। दिनेश गुंडू राव ने जिन्ना को एक कट्टर इस्लामवादी बताया था, जो शराब पीते थे और कुछ लोगों के अनुसार, सूअर का मांस भी खाते थे। फिर भी, वे एक मुस्लिम प्रतीक बन गए। वे कट्टरपंथी नहीं थे, लेकिन सावरकर थे। जिन्ना ने राजनीतिक सत्ता के लिए अपने दर्शन से समझौता किया, जबकि सावरकर कट्टरपंथी बने रहे।’